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धन्व॑ना॒ गा धन्व॑ना॒जिं ज॑येम॒ धन्व॑ना ती॒व्राः स॒मदो॑ जयेम। धनुः॒ शत्रो॑रपका॒मं कृ॑णोति॒ धन्व॑ना॒ सर्वाः॑ प्र॒दिशो॑ जयेम ॥३९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

धन्व॑ना। गाः। धन्व॑ना। आ॒जिम्। ज॒ये॒म॒। धन्व॑ना। ती॒व्राः। स॒मद॒ इति॑ स॒ऽमदः॑। ज॒ये॒म॒। धनुः। शत्रोः॑। अ॒प॒का॒ममित्य॑पऽका॒मम्। कृ॒णो॒ति॒। धन्व॑ना। सर्वाः॑। प्र॒दिश॒ इति॑ प्र॒ऽदिशः॑। ज॒ये॒म॒ ॥३९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:29» मन्त्र:39


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वीर पुरुषो ! जैसे हम लोग जो (धनुः) शस्त्र-अस्त्र (शत्रोः) वैरी की (अपकामम्) कामनाओं को नष्ट (कृणोति) करता है, उस (धन्वना) धनुष् आदि शस्त्र-अस्त्र विशेष से (गाः) पृथिवियों को और (धन्वना) उक्त शस्त्र विशेष से (आजिम्) संग्राम को (जयेम) जीते (धन्वना) तोप आदि शस्त्र-अस्त्रों से (तीव्राः) तीव्र वेगवाली (समदः) आनन्द के साथ वर्त्तमान शत्रुओं की सेनाओं को (जयेम) जीतें (धन्वना) धनुष् से (सर्वाः) सब (प्रदिशः) दिशा प्रदिशाओं को (जयेम) जीतें, वैसे तुम लोग भी इस धनुष् आदि से जीतो ॥३९ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य धनुर्वेद के विज्ञान की क्रियाओं में कुशल हों तो सब जगह ही उन का विजय प्रकाशित होवे। जो विद्या विजय और शूरता आदि गुणों से भूगोल के एक राज्य को चाहें तो कुछ भी अशक्य न हो ॥३९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(धन्वना) धनुरादिशस्त्रास्त्रविशेषेण (गाः) पृथिवी (धन्वना) (आजिम्) सङ्ग्रामम्। आजाविति सङ्ग्रामनामसु पठितम् ॥ (निघ०२.१७) (जयेम) (धन्वना) शतघ्न्यादिभिः शस्त्रास्त्रैः (तीव्राः) तीव्रवेगवतीः शत्रूणां सेनाः (समदः) मदेन सह वर्त्तमानाः (जयेम) (धनुः) शस्त्रास्त्रम् (शत्रोः) अरेः (अपकामम्) अपगतश्चासौ कामश्च तम् (कृणोति) करोति (धन्वना) (सर्वाः) (प्रदिशः) दिशोपदिशः (जयेम) ॥३९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वीराः ! यथा वयं यद्धनुः शत्रोरपकामं कृणोति, तेन धन्वना गा धन्वनाऽऽजिं च जयेम, धन्वना समदो जयेम, धन्वना तीव्राः समदो जयेम, धन्वना सर्वाः प्रदिशो जयेम, तथा यूयमप्येतेन जयत ॥३९ ॥
भावार्थभाषाः - यदि मनुष्या धनुर्वेदविज्ञानक्रियाकुशला भवेयुस्तर्हि सर्वत्रैव तेषां विजयः प्रकाशेत, यदि विद्याविनयशौर्यादिगुणैर्भूगोलैकराज्यमिच्छेयुस्तर्हि किमप्यशक्यं न स्यात् ॥३९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे धनुर्विद्येच्या क्रियेत प्रवीण असतात त्यांना सर्वत्र विजय प्राप्त होतो. ज्यांना विद्याविनय व शौर्य इत्यादी गुणांनी पृथ्वीवर साम्राज्य निर्माण करावयाचे असते त्यांना ते मुळीच अशक्य नाही.